बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 समाजशास्त्र बीए सेमेस्टर-3 समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 समाजशास्त्र
प्रश्न- अभिजात वर्ग के परिभ्रमण की अवधारणा क्या है?
अथवा
अभिजात वर्ग से आप क्या समझते हैं?
उत्तर -
अभिजात वर्ग का परिभ्रमण
प्रत्येक समाज में किसी न किसी आधार पर ऊँच-नीच का एक संस्तरण अवश्य ही होता है। आमतौर पर प्रत्येक समाज को दो मुख्य वर्गों में विभक्त किया जा सकता है जोकि साधारण बोलचाल में उच्च वर्ग (upper class) और निम्न वर्ग ( lower class) कहलाते हैं। उच्च वर्ग के लोगों के हाथों में शक्ति होती है और वे प्रायः समाज के शासक होते हैं। इस दृष्टिकोण से यह वर्ग प्रभावशाली वर्ग होता है जिसके सदस्य अधिक बुद्धिमान, चतुर, कुशल और समर्थ होते हैं। इन्हीं गुणों के बल पर वे सामाजिक संस्तरण में उच्च आसन पर अधिष्ठित होते हैं तथा समाज का शासन करते हैं। परेटो ने इसी विशिष्ट उच्च वर्ग को 'अभिजात वर्ग ( Elite ) कहा है।
परेटो के मतानुसार, इस अभिजात वर्ग के अन्तर्गत निरन्तर ऊपर-नीचे आने-जाने की प्रक्रिया चलती रहती है जिसे परेटो ने अभिजातों के परिभ्रमण (circulation of the elites) की संज्ञा दी है। दूसरे शब्दों में, सामाजिक संस्तरण की एक प्रमुख विशेषता यह होती है कि कोई भी वर्ग, विशेषकर अभिजात-वर्ग अधिक स्थिर नहीं होता। अपने जीवन में प्राप्त सफलता या असफलता के अनुसार निम्न वर्ग के व्यक्ति उच्च वर्ग में जा या आ सकते हैं। इस परिभ्रमण की गति प्रत्येक समाज में एक सी नहीं होती है। परन्तु परिभ्रमण की प्रक्रिया प्रत्येक समाज में होती अवश्य है क्योंकि कोई भी वर्ग पूर्णतया बन्द वर्ग हो सके, ऐसा सम्भव नहीं। वास्तव में प्रत्येक समाज में किसी न किसी गति से अभिजातों के परिभ्रमण की प्रक्रिया चलती ही रहती है, यद्यपि इस प्रकार के परिभ्रमण को अधिक प्रोत्साहन नहीं दिया जाता है। उसी प्रकार अभिजातों के परिभ्रमण की तीव्रता प्रत्येक समाज में भिन्न-भिन्न होती है। फिर भी यह सदैव होने वाली एक प्रक्रिया है। संक्षेप में, अभिजातों के परिभ्रमण की गति तथा तीव्रता एक समाज से दूसरे समाज तथा एक समय से दूसरे समय के अनुसार भिन्न-भिन्न होती है, परन्तु हर समय में तथा हर समाज में होती अवश्य रहती है। अति संक्षेप में हम कह सकते हैं कि वर्गों में नीचे से ऊपर और ऊपर से नीचे आने-जाने की प्रक्रियां हर समाज में चलती रहती है और उसके तीन प्रमुख कारण हैं -
(1) कोई भी वर्ग पूर्णतया बन्द नहीं हो सकता।
(2) अभिजात वर्ग शक्ति के अधिकारी होते हैं, और वह शक्ति उन्हें भ्रष्ट कर देती है तथा उनका पतन होता है।
(3) नीचे के वर्ग में भी कुशल और बुद्धिमान व्यक्ति होते हैं, जोकि ऊपर की ओर चढ़ते जाते हैं।
जैसाकि प्रारम्भ में ही कहा जा चुका है कि समाज में इस अभिजात वर्ग का प्रभुत्व होता है, परन्तु वे परिस्थितियाँ, जिन पर उसका प्रभुत्व निर्भर है, परिवर्तनशील होती हैं। परिस्थितियों के बदलने के साथ- साथ इनका प्रभुत्व भी घटता-बढ़ता रहता हैं। नई शक्ति के उदय हो जाने पर नए अभिजात वर्ग का जन्म होता है और पुराना अभिजात वर्ग धीरे-धीरे नष्ट हो जाता है। परेटो के मतानुसार, अभिजात वर्ग अधिक दिन तक स्थिर या जीवित नहीं रहता। इस वर्ग की इस प्रकार की प्रवृत्ति का फल यह होता है कि अभिजातों की संख्या घटती है और उनके रिक्त स्थानों को भरने के लिए निम्न वर्ग के सदस्यों में से उन लोगों को ऊपर जाने का अवसर प्राप्त होता है जोकि अधिक कुशल और समर्थ होते हैं। अभिजात वर्ग में पाई जाने वाली कमी की पूर्ति इसी प्रकार होती है। इसी कारण जर्मनी में भी जो आज अभिजात वर्ग कहलाता है उसके अधिकतर सदस्य वे लोग हैं जोकि प्राचीन काल में अभिजातों के नौकर मात्र थे। अतः स्पष्ट है कि अभिजात वर्ग का नाश उनकी संख्या में निरन्तर कमी होते रहने के कारण तथा उनके गुणों की समाप्ति के कारण होता है। उनके खाली स्थानों को निम्न वर्ग के सदस्य भरते रहते हैं। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि अभिजात वर्ग समाज का शासन करते हैं, परन्तु अपनी कब्र को भी स्वयं ही खोदते हैं। इसलिए परेटो ने स्पष्ट ही कहा है, "इतिहास कुलीन-तन्त्रों का कब्रिस्तान है।"
उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि परेटो के मतानुसार, अभिजात वर्ग का पतन तथा निम्न वर्ग का उत्थान या ऊपर की ओर चढ़ना हर समाज में हर समय होता रहता है। परन्तु अभिजात वर्ग इस परिभ्रमण या प्रवाह के पक्ष में नहीं होते हैं, क्योंकि इसके द्वारा निम्न वर्ग के लोग निरन्तर उनके वर्ग में आते हैं जिसके फलस्वरूप उनकी प्रतिष्ठा और शक्ति दोनों ही घटती जाती है। इस प्रकार वे इस प्रवाह को रोकने का भरसक प्रयत्न करते रहते हैं और उनके उचित तथा अनुचित साधनों को उस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपनाने में भी नहीं हिचकते हैं। अधिकार, शक्ति तथा प्रतिष्ठा का अपना मोह होता है जो अभिजात वर्ग के लोगों को जकड़े रहता है और वे अपनी स्थिति या प्रतिष्ठा को अपनाए रखने के लिए शक्ति या बल का भी प्रयोग करते हैं। इसका परिणाम तो अभिजात वर्ग के लिए अत्यन्त हानिकारक होता है। परेटो का विश्वास है कि पुराने कुलीन-तन्त्र का अन्त तथा उसके स्थान पर कठोर सैनिक कुलीन - तन्त्र का जन्म अवश्य ही होकर रहेगा। परन्तु इस नई व्यवस्था का निर्माण निम्न वर्ग के लोगों के द्वारा ही होगा।
अभिजात वर्ग के परिभ्रमण की उपरोक्त अवधारणा को भारतीय पृष्ठभूमि ( Indian scene ) पर किया जा सकता है। इसका सबसे उत्तम उदाहरण भारतीय जाति प्रथा है। पहले जातीय संस्तरण में ब्राह्मणों की स्थिति सबसे ऊपर थी और सम्पूर्ण जाति-व्यवस्था इन्हीं की प्रतिष्ठा पर निर्भर थी। प्राचीन भारत में पुरोहित राजाओं का भी उल्लेख मिलता है। वैसे भी राज पुरोहितों को राजनीतिक मामलों में : पर्याप्त क्षमताएँ प्राप्त थीं और राजा लोग इन पुरोहितों की सलाह व आज्ञा को शायद ही अमान्य करते थे। इस रूप में ब्राह्मण शासक वर्ग तक को नियन्त्रित करने वाले होते थे। सामाजिक व धार्मिक क्षेत्र में भी इसकी प्रचुर शक्ति होती थी। इसके विपरीत, हरिजनों को जातीय संस्तरण में सबसे अधम या निम्नतम स्थान दिया गया था और वे असंख्य सामाजिक, धार्मिक व राजनीतिक निर्योग्यताओं के शिकार थे। परन्तु धीरे-धीरे हरिजनों की सामाजिक स्थिति ऊपर की ओर उठती गई और आज कम से कम वैधानिक दृष्टिकोण से, ब्राह्मणों का प्रभुत्व पर्याप्त घट गया है, वे अपने पहले की बुद्धिमत्ता, कुशलता, सामर्थ्य और शौर्य को खोकर धीरे-धीरे नीचे की ओर उतरते जा रहे हैं अर्थात् उनकी पूर्व प्रतिष्ठा व स्थिति से उनका पतन हो रहा है। उसी प्रकार अंग्रेजी शासनकाल में भारतवर्ष में जो लोग शासक थे, शक्तिवान तथा प्रभावशाली थे, आज उनका पतन हो चुका है उनको जेल में बन्द कर देते थे और जिन पर लाठी व गोलियों की वर्षा करते थे तथा जिनको वे 'काला आदमी या 'गुलाम' की संज्ञा देते थे। वहीं 'गुलाम' आज राजा है, शासक है, शक्तिवान और प्रभावशाली है और जो राजा थे उनका आज भारतीय सामाजिक व्यवस्था से नाम तक मिट गया है। वे चले गए हैं, उनका 'कब्रिस्तान' मात्र भारत में रह गया है। भारतीय पृष्ठभूमि पर अभिजात वर्ग के परिभ्रमण का इससे उत्तम उदाहरण और क्या हो सकता है।
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- प्रश्न- ए. आर. देसाई के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण का अर्थ तथा परिभाषा बताइये? भारत में आधुनिकीकरण के लक्षण बताइये।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण के प्रमुख लक्षण बताइये।
- प्रश्न- भारतीय समाज पर आधुनिकीकरण के प्रभाव की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- लौकिकीकरण का अर्थ, परिभाषा व तत्व बताइये। लौकिकीकरण के कारण तथा प्रभावों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लौकिकीकरण के प्रमुख कारण बताइये।
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता क्या है? धर्मनिरपेक्षता के मुख्य कारकों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- वैश्वीकरण क्या है? वैश्वीकरण की सामाजिक सांस्कृतिक प्रतिक्रिया की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत पर वैश्वीकरण और उदारीकरण के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक व्यवस्था पर प्रभावों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में वैश्वीकरण की कौन-कौन सी चुनौतियाँ हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित शीर्षकों पर टिप्पणी लिखिये - 1. वैश्वीकरण और कल्याणकारी राज्य, 2. वैश्वीकरण पर तर्क-वितर्क, 3. वैश्वीकरण की विशेषताएँ।
- प्रश्न- निम्नलिखित शीर्षकों पर टिप्पणी लिखिये - 1. संकीर्णता / संकीर्णीकरण / स्थानीयकरण 2. सार्वभौमिकरण।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण के कारकों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के किन्हीं दो दुष्परिणामों की विवचेना कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकता एवं आधुनिकीकरण में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- एक प्रक्रिया के रूप में आधुनिकीकरण की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण की हालवर्न तथा पाई की परिभाषा दीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के दुष्परिणाम बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? सामाजिक आन्दोलन का अध्ययन किस-किस प्रकार से किया जा सकता है?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन का अध्ययन किस-किस प्रकार से किया जा सकता है?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के गुणों की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के सामाजिक आधार की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन को परिभाषित कीजिये। भारत मे सामाजिक आन्दोलन के कारणों एवं परिणामों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- "सामाजिक आन्दोलन और सामूहिक व्यवहार" के सम्बन्धों को समझाइये |
- प्रश्न- लोकतन्त्र में सामाजिक आन्दोलन की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
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- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के विकास के चरण अथवा अवस्थाओं को बताइये।
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- प्रश्न- पर्यावरणीय आन्दोलनों के सामाजिक महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
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